किस जुर्म में छीनी गयीं मुझसे मेरी आँखें
उन में तो कोई ख्वाब सजाए भी नहीं थे...
क्यूँ लूट गयी उजालों से रोशनी इस कदर
हमने तो कभी अश्रु बहाए भी नहीं थे
अंधेरों में यूँ झोंको ना मुझे ए बेरहम
अपने भी कभी लगते पराए भी नहीं थे
किस जुर्म में छीनी गयीं मुझसे मेरी आँखें
उन में तो कोई ख्वाब सजाए भी नहीं थे...!!
उन में तो कोई ख्वाब सजाए भी नहीं थे...
क्यूँ लूट गयी उजालों से रोशनी इस कदर
हमने तो कभी अश्रु बहाए भी नहीं थे
अंधेरों में यूँ झोंको ना मुझे ए बेरहम
अपने भी कभी लगते पराए भी नहीं थे
किस जुर्म में छीनी गयीं मुझसे मेरी आँखें
उन में तो कोई ख्वाब सजाए भी नहीं थे...!!